West Bengal Election... हुगली की 8 सीटों पर बीजेपी की जीत को रोक पाएंगी ममता दीदी?

Edited By Nitika, Updated: 06 Apr, 2021 10:30 AM

direct fight between bjp and tmc is going on 8 seat of hooghly district

पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण में 31 विधानसभा सीटों पर वोटिंग जारी है। जिन 31 सीटों पर 6 अप्रैल को मतदान जारी है उनमें से पिछली बार 30 सीटों पर तृणमूल कांग्रेस ने जीत हासिल की थी।

 

कोलकाता(विकास कुमार): पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण में 31 विधानसभा सीटों पर वोटिंग जारी है। जिन 31 सीटों पर 6 अप्रैल को मतदान जारी है उनमें से पिछली बार 30 सीटों पर तृणमूल कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। वहीं केवल आमता विधानसभा सीट पर ही कांग्रेस की जीत नसीब हुई थी। 2021 के विधानसभा चुनाव में हुगली जिले की सियासी फिजा थोड़ी बदली हुई मालूम पड़ रही है। हुगली जिले की 8 सीटों पर विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण में मतदान जारी है।

वैसे तो हुगली जिले में कुल 18 विधानसभा सीट है। इन 18 सीटों में से 8 पर 6 अप्रैल को वोटिंग हो रही है। वहीं बाकी की दस सीटों पर 10 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे। इस बार हुगली जिले में तृणमूल कांग्रेस के लिए अपना सियासी गढ़ बचाना आसान नहीं लग रहा है। इस जिले में कांग्रेस और वाममोर्चा भी अपने पुराने रिकॉर्ड को दोहराने के लिए जूझ रहा है। वैसे तो 2016 के विधानसभा चुनाव में हुगली जिले में तृणमूल कांग्रेस ने जीत का झंडा लहरा कर विरोधियों को करारी मात दी थी, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में अचानक से तृणमूल के इस किले में बीजेपी ने सेंध लगा दी थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में हुगली सीट से बीजेपी कैंडिडेट लाकेट चटर्जी ने जीत हासिल कर ममता दीदी को चौंका दिया था। लाकेट चटर्जी ने 6 लाख 71 हजार 448 वोट हासिल कर टीएमसी को मात दिया था। वहीं टीएमसी कैंडिडेट रत्ना डे को 5 लाख 98 हजार 86 वोट ही मिल पाया था। इस लिहाज से लाकेट चटर्जी ने अच्छी खासी मार्जिन से टीएमसी कैंडिडेट रत्ना डे को हराने में कामयाबी हासिल की थी। वहीं सीपीएम कैंडिडेट प्रदीप साहा ने भी 1 लाख 21 हजार 588 वोट हासिल कर अपनी मौजूदगी का अहसास करा दिया था, तो कांग्रेसी कैंडिडेट प्रतुल चंद्र साहा को 25 हजार 374 वोट ही मिल पाए थे। देखा जाए तो 2019 के लोकसभा चुनाव में अगर सीपीएम और कांग्रेस ने वोट झटके नहीं होते तो तृणमूल कांग्रेस, बीजेपी को हरा भी सकती थी, यानी 2021 के विधानसभा चुनाव में हुगली जिले की सीटों पर तृणमूल के लिए सीपीएम–कांग्रेस और फुरफुरा शरीफ का गठजोड़ भी एक बड़ा खतरा बना हुआ है, क्योंकि संयुक्त मोर्चा के कैंडिडेट जो वोट काटते हैं उनसे ज्यादा नुकसान ममता बनर्जी की पार्टी को ही होता दिख रहा है।

 

हुगली जिले में वोटरों में अगर कम्युनल लाइन पर पोलराइजेशन हुआ तो 2019 की बढ़त को बीजेपी 2021 के विधानसभा चुनाव में भी कायम रख सकती है। हुगली जिले में हिंदुओं की आबादी 82.9 फीसदी है तो वहीं मुस्लिमों की आबादी 15.8 फीसदी है। इस जिले में अनुसूचित जाति की आबादी 24.4 फीसदी और अनुसूचित जनजाति की आबादी 4.2 फीसदी है। साफ है कि हुगली जिले के सियासी नतीजे तय करने में अनुसूचित जाति-जनजाति और मुस्लिमों की अहम भूमिका है।

वैसे पश्चिम बंगाल के दूसरे हिस्सों की तरह ही हुगली जिले में भी दस साल के दीदी के शासन के खिलाफ एंटी इन्कंबैंसी का असर नज़र आ रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में एंटी इंकंबैंसी लहर का सीधा फायदा बीजेपी को मिला था। वहीं 2021 के विधानसभा चुनाव में भी भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और पलायन से जूझ रहे हुगली के वोटर सत्ताधारी दल पर अपना गुस्सा निकाल सकते हैं।
 

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