Edited By Khushi, Updated: 30 Sep, 2024 11:58 AM
झारखंड उच्च न्यायालय ने सीमा पार से घुसपैठ कर राज्य में बसने के आरोपों और स्थानीय आबादी पर उसके असर को लेकर केंद्र तथा राज्य के अधिकारियों की एक तथ्यान्वेषण समिति गठित करने एवं इस संबंध में रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है।
रांची: झारखंड उच्च न्यायालय ने सीमा पार से घुसपैठ कर राज्य में बसने के आरोपों और स्थानीय आबादी पर उसके असर को लेकर केंद्र तथा राज्य के अधिकारियों की एक तथ्यान्वेषण समिति गठित करने एवं इस संबंध में रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद और न्यायमूर्ति अरुण कुमार राय की पीठ ने यह निर्देश एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। याचिका में आरोप लगाया गया था कि बांग्लादेशी घुसपैठिये घुसपैठ कर झारखंड आ रहे हैं और संथाल परगना क्षेत्र में बस रहे हैं तथा स्थानीय आबादी को प्रभावित कर रहे हैं। अदालत ने कहा, ‘‘इस बात पर विवाद नहीं है कि झारखंड राज्य का निर्माण 15 नवंबर 2000 को केंद्रीय कानून के तहत किया गया था, जो इस तथ्य पर आधारित था कि झारखंड की अधिकांश आबादी आदिवासी है।'' पीठ ने कहा, ‘‘इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जनजातीय आबादी की जनसांख्यिकी में गिरावट की समस्या वर्तमान में झारखंड की जनसंख्या संरचना को प्रभावित कर रही है।'' अदालत ने तथ्यान्वेषण समिति के गठन का आदेश देते हुए कहा कि इसका उद्देश्य जमीनी स्तर पर हो रही घुसपैठ के कारणों तथा जनसंख्या पर इसके प्रभाव के बारे में जानकारी उपलब्ध कराना है।
पीठ ने अपने 32 पन्नों के आदेश में कहा, ‘‘यह उपचारात्मक उपायों की दिशा में पहला कदम है, जिससे पूरी संवेदनशीलता से उस समस्या की गंभीरता को समझा जा सकता है, जिसका हम सामना कर रहे हैं।'' याचिका में आरोप लगाया गया कि संथाल परगना क्षेत्र के साहिबगंज, पाकुड़, गोड्डा, जामताड़ा और दुमका जिलों में घुसपैठिये बस रहे हैं। इसमें यह दावा भी किया गया है कि वे इन पांच जिलों में मदरसे स्थापित कर रहे हैं और स्थानीय आदिवासी आबादी के अस्तित्व को खतरे में डाल रहे हैं। इससे पहले केंद्र द्वारा जमा एक हलफनामा में पाकुड़ और साहिबगंज में घुसपैठियों की मौजूदगी की बात कही गई तथा केंद्रीय गृह सचिव और राज्य के मुख्य सचिव को प्रमुख सदस्यों के रूप में शामिल करते हुए एक उच्च-स्तरीय तथ्यान्वेषण समिति गठित करने का प्रस्ताव किया।