Edited By Ramanjot, Updated: 02 Jun, 2025 12:14 PM

बात सिर्फ तारीख की नहीं, जज़्बात की भी है। आज 2 जून है, और इस तारीख को देखकर बरबस ही एक मशहूर कहावत याद आती है – "दो जून की रोटी"।
Do June Ki Roti Meaning:बात सिर्फ तारीख की नहीं, जज़्बात की भी है। आज 2 जून है, और इस तारीख को देखकर बरबस ही एक मशहूर कहावत याद आती है – "दो जून की रोटी"। बिहार जैसे राज्य में, जहां बड़ी आबादी अब भी रोज़गार, गरीबी और सामाजिक असमानता से जूझ रही है, यह कहावत सिर्फ शब्द नहीं, संघर्ष, उम्मीद और ज़िन्दगी की हकीकत बन जाती है।
क्या है 'दो जून की रोटी' का असली मतलब?
"दो जून की रोटी" का मतलब है — इंसान को सुबह और शाम भरपेट भोजन मिल जाए। भारत में सदियों से यह कहावत उस बुनियादी ज़रूरत को दर्शाती रही है, जिसे पूरा करना कई लोगों के लिए अब भी सपने जैसा है। जहां कई लोग आज भी मजदूरी करके दिन भर की कमाई से शाम की रोटी जुटाते हैं, वहीं कुछ के लिए यह कहावत उनके जीवन का उद्देश्य बन चुकी है।
आंकड़ों की जुबानी भूख की हकीकत
बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लाखों परिवार ऐसे हैं, जिनके लिए दो वक्त की रोटी जुटाना चुनौती है। राज्य सरकार और केंद्र सरकार की योजनाओं के बावजूद गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों की संख्या चिंताजनक है। हाल ही में जारी राष्ट्रीय सर्वे में सामने आया कि अब भी बड़ी आबादी ऐसी है जिसे पोषणयुक्त भोजन नहीं मिल पाता।
'दो जून की रोटी' अब बन रही है उम्मीद की मिसाल
हालांकि बदलते वक्त में हालात सुधार की ओर हैं। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), मनरेगा और जीविका जैसे कार्यक्रमों ने कई परिवारों को राहत दी है। इसके साथ ही बिहार में महिलाओं की स्वयं सहायता समूहों (SHGs) ने न केवल रोज़गार बढ़ाया है बल्कि दो वक्त की रोटी को सम्मान के साथ हासिल करने की राह भी खोली है।
भावनाओं से जुड़ी एक गहरी कहावत
'दो जून की रोटी' कोई आम जुमला नहीं — यह मानव जीवन की बुनियादी आवश्यकता और आत्मसम्मान का प्रतीक है। इस कहावत में भूख की पीड़ा, मेहनत की कद्र और आत्मनिर्भर बनने की चाहत छिपी है। यह कहावत आज भी करोड़ों लोगों की दबी हुई आवाज़ है, जो कहती है — "हमें सिर्फ भरपेट खाना नहीं, इज़्ज़त के साथ जीने का हक़ चाहिए।"