Edited By Nitika, Updated: 21 Jun, 2024 08:22 AM
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने बिहार सरकार द्वारा आरक्षण में की गई वृद्धि को रद्द करने के पटना उच्च न्यायालय के फैसले को "प्रतिगामी निर्णय" बताते हुए कहा कि संसद को इस संबंध में कोई कानून...
नई दिल्ली/पटनाः भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने बिहार सरकार द्वारा आरक्षण में की गई वृद्धि को रद्द करने के पटना उच्च न्यायालय के फैसले को "प्रतिगामी निर्णय" बताते हुए कहा कि संसद को इस संबंध में कोई कानून लाना चाहिए। पिछले वर्ष दलितों, पिछड़े वर्गों और आदिवासियों के लिए सरकारी नौकरियों तथा शिक्षण संस्थानों में दिए जाने वाले आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 फीसदी किए जाने के राज्य सरकार के फैसले को पटना उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को रद्द कर दिया। बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने यह फैसला जाति आधारित सर्वेक्षण के बाद किया था। जाति सर्वेक्षण और आरक्षण में वृद्धि उस समय की गई थी, जब कांग्रेस-राजद-भाकपा (माले) बिहार सरकार का हिस्सा थे।
भट्टाचार्य ने कहा, "मुझे लगता है कि यह बहुत ही प्रतिगामी निर्णय है।" उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) को दिया गया 10 प्रतिशत आरक्षण पहले ही 50 फीसदी आरक्षण की सीमा को पार कर चुका है। भट्टाचार्य ने कहा, "वे कह रहे हैं कि समानता के अधिकार का उल्लंघन हुआ है। मूल रूप से, इसका मार्ग केंद्र सरकार ने ही तैयार किया था, जब उसने 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस (आरक्षण) लागू किया था।" उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि ईडब्ल्यूएस पूरी तरह से गलत नाम है, क्योंकि अगर आप आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों की बात कर रहे हैं, तो वे अन्य जगहों की तुलना में एससी, एसटी और ओबीसी में ज़्यादा पाए जाते हैं। इसलिए मूल रूप से, आप वास्तव में गैर-ओबीसी या गैर-एससी, तथाकथित उच्च जातियों को आरक्षण देने की कोशिश कर रहे हैं।"
भट्टाचार्य ने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को उच्चतम न्यायालय ने बरकरार रखा है और यह "वास्तव में तथाकथित 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करता है।" उन्होंने कहा, “इसलिए, मुझे लगता है कि जाति जनगणना के बाद बिहार विधानसभा ने जो किया... सरकार ने जो किया वह सही था, जिसमें सभी दल एक साथ थे। मुझे यह बहुत ही प्रतिगामी और दुर्भाग्यपूर्ण लगता है कि उच्च न्यायालय ने इसे रद्द कर दिया है।"
भाकपा (माले) के नेता ने कहा कि संसद को कोई कानून लाना चाहिए। नीतीश कुमार सरकार ने 21 नवंबर को राज्य सरकार की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में वंचित जातियों के लिए आरक्षण 50 से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने के लिए राजपत्र अधिसूचना जारी की थी। ईडब्ल्यूएस का कोटा मिलाकर बिहार में आरक्षण की सीमा 75 प्रतिशत हो गई थी। बिहार सरकार द्वारा करवाए गए जाति आधारित सर्वेक्षण के अनुसार राज्य की कुल आबादी में ओबीसी और ईबीसी की हिस्सेदारी 63 प्रतिशत है, जबकि एससी और एसटी की कुल आबादी 21 प्रतिशत से अधिक है।