Edited By Nitika, Updated: 25 Jun, 2024 03:50 PM
बगहाः बिहार की प्राचीन लोक कलाओं में से एक सिक्की कला जो आज खत्म होने के कगार पर है। ऐसे में पश्चिम चम्पारण जिला के बगहा की आदिवासी औरतों के प्रयास से यह कला पुनर्जीवित हो रही है। इस कला से आदिवासी क्षेत्र की औरतें ना केवल अपने सांस्कृतिक विरासत को...
बगहाः बिहार की प्राचीन लोक कलाओं में से एक सिक्की कला जो आज खत्म होने के कगार पर है। ऐसे में पश्चिम चम्पारण जिला के बगहा की आदिवासी औरतों के प्रयास से यह कला पुनर्जीवित हो रही है। इस कला से आदिवासी क्षेत्र की औरतें ना केवल अपने सांस्कृतिक विरासत को बचा रही हैं बल्कि इस हुनर की वजह से यहां की महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी बन रही हैं।
दरअसल, पश्चिम चंपारण के बाढ़ प्रभावित इलाके की नदियों के किनारे उगने वाले एक विशेष प्रकार की घास का उपयोग करके आदिवासी महिलाएं रंग बिरंगी मौनी, डलिया, पंखा, पौती, पेटारी, सकौती, सिंहोरा जैसी चीजें बनाती हैं, जिसकी मांग देश के साथ-साथ विदेशों में भी है।
बताया जा रहा है कि सिक्की कला का इतिहास काफी प्राचीन है। प्राचीन समय से ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं इस कला में माहिर रही हैं। पुराणों में भी इस बात का जिक्र है कि राजा जनक ने अपनी पुत्री वैदेही को विदाई के समय सिक्की कला की सिंहोरा, डलिया और दौरी बनाकर भेंट में दिया था। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में बेटी की विदाई के दौरान सिक्की से बने वस्तुओं को देने की परंपरा चली आ रही हैं।
आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बन रहीं महिलाएं
वहीं इस कला के पुनर्जीवित से सैंकड़ों आदिवासी महिलाओं को काम मिला। वे आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बन रहीं है। ऐसे में अगर सरकार इस सिक्की कला को बढ़ावा दें तो ग्रामीण क्षेत्रों में लघु एवं कुटीर उद्योग को बड़े पैमाने पर स्थापित किया जा सकता है, जिससे अनेक लोगों को रोजगार मिलेगा।