याचिकाकर्ता का HC में आरोप- मुख्यमंत्री, उनकी पत्नी एवं सहयोगी अवैध खनन से पैसे करते थे उगाही

Edited By Nitika, Updated: 01 Jul, 2022 03:57 PM

petitioner allegation in hc

झारखंड उच्च न्यायालय में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एवं उनके परिजनों तथा सहयोगियों के नाम से खनन पट्टा, कथित फर्जी कंपनियों के माध्यम से करोड़ों रुपए के धनशोधन सहित विभिन्न मामलों में बहस प्रारंभ हो गई।

 

रांचीः झारखंड उच्च न्यायालय में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एवं उनके परिजनों तथा सहयोगियों के नाम से खनन पट्टा, कथित फर्जी कंपनियों के माध्यम से करोड़ों रुपए के धनशोधन सहित विभिन्न मामलों में बहस प्रारंभ हो गई। याचिकाकर्ता ने शुरुआत में ही आरोप लगाया कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, उनकी पत्नी कल्पना सोरेन, प्रेस सलाहकार अभिषेक प्रसाद उर्फ पिंटू, सोरेन के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा, व्यवसाय सहयोगी अमित अग्रवाल और सुरेश नागरे अवैध खनन से पैसे की उगाही कर फर्जी (शेल) कंपनियों में निवेश करते हैं और उसके जरिए देश के अन्य भागों में संपत्ति खरीदी जाती है।

मुख्य न्यायाधीश डॉ. रविरंजन एवं सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ के समक्ष जनहित याचिकाकर्ता शिवशंकर शर्मा के अधिवक्ता राजीव कुमार ने बहस प्रारंभ करते हुए कहा, ‘‘मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, उनकी पत्नी कल्पना सोरेन, प्रेस सलाहकार अभिषेक उर्फ पिंटू, सोरेन के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा, व्यवसाय सहयोगी अमित अग्रवाल और सुरेश नागरे अवैध खनन से पैसे की उगाही कर शेल कंपनियों में निवेश करते हैं और उसके जरिए देश के अन्य भागों में संपत्ति खरीदी जाती है।'' राजीव कुमार ने सुरेश नागरे का सम्बंध मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के भाई बसंत सोरेन से बताते हए कहा कि वह अवैध बालू खनन और स्टोन चिप्स का ‘किंगपिन' है। नागर का संबंध मुंबई के अबू आजमी के बेटे से है। उन्होंने यह भी आशंका जताई कि इनके तार अंडरवर्ल्ड से भी जुड़े हो सकते हैं। याचिकाकर्ता की ओर से शराब व्यवसाय का भी मुद्दा उठाते हुए योगेंद्र तिवारी, अमरेंद्र तिवारी और राज्य के कुछ आईएएस अधिकारी का भी नाम अदालत में लिया गया।

याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि इनकी मिलीभगत से मनमाने तरीके से शराब का ठेका दिया गया। उनकी ओर से कई ऐसी शेल कंपनियों का जिक्र किया गया जिसके जरिए शराब ठेका में पैसे का कथित निवेश किया गया है। याचिकाकर्ता ने इन सभी का अदालत को विवरण भी दिया। इस दौरान प्रार्थी की ओर से खूंटी में हुए मनरेगा घोटाले में कहा गया कि मनरेगा अधिनियम के तहत उपायुक्त ही योजना लागू करने में हुई गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार होते हैं। उन्होंने दस्तावेजों के आधार पर आरोप लगाया कि तत्कालीन उपायुक्त पूजा सिंघल ने वित्तीय अनियमितता की, लेकिन उन्हें विभागीय जांच में क्लीन चिट दे दी गई, जबकि इस मामले में कनिष्ठ अभियंता (जेई) राम विनोद सिन्हा पर 16 प्राथमिकयां दर्ज करवा दी गईं। प्रार्थी की ओर से बहस पूरी होने के बाद राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पक्ष रखा और उन्होंने बिंदुवार कहा कि प्रार्थी की ओर से सिर्फ आरोप लगाए गए हैं, उससे संबंधित कोई भी दस्तावेज अदालत में पेश नहीं किए गए हैं और न ही आरोपों का आधार बताया गया है। सिब्बल ने कहा कि प्रार्थी ने प्रथम दृष्ट्या अभी कोई ऐसा दस्तावेज या आधार पेश नहीं किया है, जिससे आरोप को सच माना जाए और ऐसे में सभी आरोप बिल्कुल निराधार हैं।

सिब्बल ने कहा कि अगर प्रार्थी को लगता है कि इस मामले में कोई अपराध हुआ है तो उन्हें प्राथमिकी दर्ज करवानी चाहिए न कि अदालत में आकर यह उम्मीद करनी चाहिए कि इस मामले की जांच सीबीआई को दे दी जाए, क्योंकि उनकी ओर से लगाए सभी आरोप निराधार हैं। राज्य सरकार की ओर से मामले में बहस जारी है और अब इस मामले में 5 जुलाई को सुनवाई होगी। उस दिन राज्य सरकार अपनी बहस पूरी करेगी। इस मामले की सुनवाई गुरुवार सुबह 10:30 बजे से प्रारंभ हुई है, जो शाम 4 बजे तक चली।

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