Edited By Ramanjot, Updated: 07 Dec, 2024 03:56 PM
"अपना जमाना आप बनाते हैं अहल-ए-दिल हम वो नहीं कि जिन को जमाना बना गया"...जिगर मुरादाबादी का यह शेर किशनगंज की बेटी नंदिनी पर एकदम फिट बैठती है। जिस उम्र में सपने देखे जाते हैं, उस उम्र में नंदिनी संघर्ष और जज्बा दिखा ई-रिक्शा चलाकर पढ़ाई-लिखाई के...
Inspirational story: "अपना जमाना आप बनाते हैं अहल-ए-दिल हम वो नहीं कि जिन को जमाना बना गया"...जिगर मुरादाबादी का यह शेर किशनगंज की बेटी नंदिनी पर एकदम फिट बैठती है। जिस उम्र में सपने देखे जाते हैं, उस उम्र में नंदिनी संघर्ष और जज्बा दिखा ई-रिक्शा चलाकर पढ़ाई-लिखाई के साथ परिवार का पेट पाल रही हैं। यह कहानी जज़्बे की है, जो हर बाधा को पार कर सकती है।
दरअसल, किशनगंज के हवाईअड्डा वार्ड संख्या 11 में टूटी फूटी झोपड़ी में सोलह वर्षीया नंदिनी का परिवार रहता हैं। इस परिवार पर उस समय परेशानी आ पड़ी जब परिवार में कमाने वाला घर का मुखिया यानि नंदिनी के पिता को बीमारियों ने जकड़ लिया। इसके बाद घर में आर्थिक संकट आ गए। चार बहनों और एक भाई में सबसे बड़ी नंदिनी ने मुसीबतों से संघर्ष का फैसला लिया। नंदिनी अब हर रोज तीन से चार घंटे शहर में ई रिक्शा चलाती है, जिससे परिवार के दो जून का खाने का इंतजाम हो जाता हैं। इतना होने के बावजूद वह पढ़ लिखकर एक अच्छा अधिकारी बनना चाहती है। नंदिनी शहर के गर्ल्स हाई स्कूल में 11वीं कक्षा में पढ़ती हैं।
नंदिनी कहती हैं कि मेरे पास समय कम है, लेकिन सपने बड़े हैं। नंदिनी ने बताया कि पिता पर कर्ज का बोझ है, मेरे परिवार में चार बहन और एक भाई हैं। घर भी नहीं है। घर के खर्च को बांटने और अपनी पढ़ाई को पूरी करने के लिए ई-रिक्शा चलाना जरूरी है। वहीं नगर परिषद अध्यक्ष इंद्रदेव पासवान ने कहा कि उनके संज्ञान में मामला आया है और तहसीलदार को निर्देश दिया गया है। उन्होंने कहा कि बच्ची को हर संभव मदद उनके द्वारा किया जाएगा।